29 Aug 2020

Easiest way to get Shanidev's blessings

शनि देव की कृपा पाने को हर कोई आतुर रहता है


जय शनि देव


शनि देव के 108 नाम 


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शनि देव की कृपा पाने को हर कोई आतुर रहता है। कोई शनि देव की पूजा करता है तो कोई शनिवार के दिन व्रत रखता है एवं दान पुण्‍य कर शनि देव को प्रसन्‍न करता है। शनि का प्रकोप झेल रहे जातकों के लिए ये उपाय अत्‍यंत फलदायी हैं। इसके अलावा शनि देव के 108 नामों का जाप करने से भी शनि देव प्रसन्‍न होते हैं। शनि देव के 108 नाम इस प्रकार हैं -:





१)ऊँ शनैश्चराय नमः।
२)ऊँ शान्ताय नमः।
३)ऊँ सर्वाभीष्टप्रदायिने नमः।
४)ऊँ शरण्याय नमः।
५)ऊँ वरेण्याय नमः।
६)ऊँ सर्वेशाय नमः।
७)ऊँ सौम्याय नमः।
८)ऊँ सुरवन्द्याय नमः।
९)ऊँ सुरलोकविहारिणे नमः।
१०)ऊँ सुखासनोपविष्टाय नमः।
११)ऊँ सुन्दराय नमः।
१२)ऊँ घनाय नमः।
१३)ऊँ घनरूपाय नमः।
१४ऊँ घनाभरणधारिणे नमः।
१५)ऊँ घनसारविलेपाय नमः।
१६)ऊँ खद्योताय नमः।
१७)ऊँ मन्दाय नमः।
१८)ऊँ मन्दचेष्टाय नमः।
१९)ऊँ महनीयगुणात्मने नमः।
२०)ऊँ मर्त्यपावनपदाय नमः।
२१)ऊँ महेशाय नमः।
२२)ऊँ छायापुत्राय नमः।
२३)ऊँ शर्वाय नमः।
२४)ऊँ शततूणीरधारिणे नमः।
२५)ऊँ चरस्थिरस्वभा वाय नमः।
२६)ऊँ अचञ्चलाय नमः।
२७)ऊँ नीलवर्णाय नम:।
२८)ऊँ नित्याय नमः।
२९)ऊँ नीलाञ्जननिभाय नमः।
३०)ऊँ नीलाम्बरविभूशणाय नमः।
३१)ऊँ निश्चलाय नमः।
३२)ऊँ वेद्याय नमः।
३३)ऊँ विधिरूपाय नमः।
३४)ऊँ विरोधाधारभूमये नमः।
३५)ऊँ भेदास्पदस्वभावाय नमः।
३६)ऊँ वज्रदेहाय नमः।
३७)ऊँ वैराग्यदाय नमः।
३८)ऊँ वीराय नमः।
३९)ऊँ वीतरोगभयाय नमः।
४०)ऊँ विपत्परम्परेशाय नमः।
४१)ऊँ विश्ववन्द्याय नमः।
४१)ऊँ गृध्नवाहाय नमः।
४३)ऊँ गूढाय नमः।
४४)ऊँ कूर्माङ्गाय नमः।
४५)ऊँ कुरूपिणे नमः।
४६)ऊँ कुत्सिताय नमः।
४७)ऊँ गुणाढ्याय नमः।
४८)ऊँ गोचराय नमः।
४९)ऊँ अविद्यामूलनाशाय नमः।
५०)ऊँ विद्याविद्यास्वरूपिणे नमः।
५१)ऊँ आयुष्यकारणाय नमः।
५२)ऊँ आपदुद्धर्त्रे नमः।
५३)ऊँ विष्णुभक्ताय नमः।
५४)ऊँ वशिने नमः।
५५)ऊँ विविधागमवेदिने नमः।
५६)ऊँ विधिस्तुत्याय नमः।
५७)ऊँ वन्द्याय नमः।
५८)ऊँ विरूपाक्षाय नमः।
५९)ऊँ वरिष्ठाय नमः।
६०)ऊँ गरिष्ठाय नमः।
६१)ऊँ वज्राङ्कुशधराय नमः।
६२)ऊँ वरदाभयहस्ताय नमः।
६३)ऊँ वामनाय नमः।
६४)ऊँ ज्येष्ठापत्नीसमेताय नमः।
६५)ऊँ श्रेष्ठाय नमः।
६६)ऊँ मितभाषिणे नमः।
६७)ऊँ कष्टौघनाशकर्त्रे नमः।
६८)ऊँ पुष्टिदाय नमः।
६९)ऊँ स्तुत्याय नमः।
७०)ऊँ स्तोत्रगम्याय नमः।
७१)ऊँ भक्तिवश्याय नमः।
७२)ऊँ भानवे नमः।
७३)ऊँ भानुपुत्राय नमः।
७४)ऊँ भव्याय नमः।
७५)ऊँ पावनाय नमः।
७६)ऊँ धनुर्मण्डलसंस्थाय नमः।
७७)ऊँ धनदाय नमः।
७८)ऊँ धनुष्मते नमः।
७९)ऊँ तनुप्रकाशदेहाय नमः।
८०)ऊँ तामसाय नमः।
८१)ऊँ अशेषजनवन्द्याय नमः।
८२)ऊँ विशेशफलदायिने नमः।
८३)ऊँ वशीकृतजनेशाय नमः।
८४)ऊँ पशूनां पतये नमः।
८५)ऊँ खेचराय नमः।
८६)ऊँ खगेशाय नमः।
८७)ऊँ घननीलाम्बराय नमः।
८८)ऊँ काठिन्यमानसाय नमः।
८९)ऊँ आर्यगणस्तुत्याय नमः।
९०)ऊँ नीलच्छत्राय नमः।
९१)ऊँ नित्याय नमः।
९२)ऊँ निर्गुणाय नमः।
९३)ऊँ गुणात्मने नमः।
९४)ऊँ निरामयाय नमः।
९५)ऊँ निन्द्याय नमः।
९६)ऊँ वन्दनीयाय नमः।
९७)ऊँ धीराय नमः।
९८)ऊँ दिव्यदेहाय नमः।
९९)ऊँ दीनार्तिहरणाय नमः।
१००)ऊँ दैन्यनाशकराय नमः।
१०१)ऊँ आर्यजनगण्याय नमः।
१०२)ऊँ क्रूराय नमः।
१०३)ऊँ क्रूरचेष्टाय नमः।
१०४)ऊँ कामक्रोधकराय नमः।
१०५)ऊँ कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमः।
१०६)ऊँ परिपोषितभक्ताय नमः।
१०७)ऊँ परभीतिहराय नमः।
१०८)ऊँ भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमः।


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ऊँ शं शनैश्चराय नमः

नीलांजनसमाभासंरविपुत्रंयमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।




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कोणोन्तको रौद्रयमोथ बभ्रु: कृष्ण: शनि: पिंगल मंदसौरि:
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीड़ा तस्मैनमः रविनन्दनाय।।
सुरासुरा किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्व विद्याधरपन्नगाश्च।
पीडयन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः रविनन्दनाय।।
नरा नरेन्द्रा पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतड्ग भृंगा:।
पीडयन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मैनमःरविनन्दनाय।।
देशाश्चदुर्गाणिवनानियत्रसेनानिवेशा:पुरपत्तनानि।
पीडयन्तिसर्वेविषमस्थितेनतस्मैनमःरविनन्दनाय।।
तिलैर्यवैर्माष गुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बर दानतोवा।
प्रीणातिमन्त्रैर्निजवासरेच तस्मै नमःरविनन्दनाय।।
प्रयागकूलेयमुनातटेचसरस्वतीपुण्यजलेगुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय।
अन्य प्रदेशात्स्वग्रहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नर सुखी स्यात्।
गृहाद्गतो यो न पुनः प्रयातितस्मैनमः श्री रविनन्दनाय।।
स्त्रष्टा स्वयंभूर्भूवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजु: साममूर्ति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय।।
शन्यष्टकंय: प्रयत:प्रयातेनित्यंसुपुत्रै:बंधुबांधवैश्च।
पठेतु सौख्यं भुवि भोगयुक्त:प्राप्नोति निर्वाणप्रदं तदन्ते।।
कोणस्थ: पिंगलो वभ्रु:कृष्णोरौद्रोन्तकोयम:।
सौरि: शनैश्चरोमन्द:पिप्पलादेनसंस्तुत:।।
एतानिदशनामानि प्रातरुत्थाय यपठेत्।
शनैश्चरकृता पीड़ानकदाचिद्भविष्यति।।




इति श्री दशरथकृत शनिस्तोत्रं सम्पूर्णम्

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जय शनि देव
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